ड से डिलीट - मुसाफिर कैफ़े हिंदुस्तान में !

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रविवार, 24 Sep, 2017




साहित्य 


हिंदी में दिनोंदिन पाठकों की घटती संख्या की चिंता के बीच दिव्य प्रकाश दुबे का उपन्यास "मुसाफिर कैफ़े" बहुत कम समय में "बेस्टसेलर" क्लब में सामिल हो चूका है । एक नयी तरह की किस्सागोई और नयी भाषा के इस्तेमाल से इसने हिंदी जगत के शांत जल में लहरें पैदा करने का काम किया है । पेश है इस उपन्यास की एक बानगी: 


जिंदगी की सबसे अच्छी और ख़राब बात यही है की ये हमेशा नहीं रहने वाली । 
ये बात एक उम्र के बाद हम सभी को समझ में आने लगती है कि दिन अच्छे हो या ख़राब, दोनों बीत जाते हैं । इसलिए लाख अपने करीब होकर भी रोना हंसने से रेस में पीछे रह जाता है ।

 सुधा बहुत कम उदास होती थी । 
एक दिन जब कोर्ट से लौटी तो बहुत उदास थी । 
आते ही बोली -
 “बहुत मूड आफ है यार ।”
 “क्या हुआ ?” 
“टीम के एक बंदे ने सुसाइड कर लिया ।”
 “क्यूँ?” 
“पता नहीं, अभी थोड़े दिन पहले ही शादी तय हुई थीं उसकी । परसों हमने साथ ही लंच किया था । मेरी सीट के पड़ोस वाली सीट पर बेठता था वो । हमेशा हँसता रहता था । बहुत अच्छा बंदा था । कुछ पता नहीं चल रहा ।” 

“लव मैरिज होने वाली थी की अरेंज?”
 “लव मैरिज ही होने वाली थी । मैं उस बंदी से मिली हूँ । बहुत ही अच्छी थी वो । पहले घरवाले नहीं माने थे, बाद में मान गए थे । यार मैं कोर्ट नहीं जा पाऊँगी कुछ दिन । मुझे ले चलो कहीं । बहुत डर लगता है मुझे शादी से ।” 

“अपनी सीट चेंज करा लो ?” 
“सीट चेंज कराने से क्या होगा?”
 “कुछ होगा नहीं, उससे related कुछ देखोगी नहीं तो याद भी नहीं आएगी ।”
 “मान लो मुझे कुछ हो गया तो तुम ये घर चेंज कर लोगे?”
 “कैसे बातें कर रही हो ?’’ 

“बताओ, सही में कुछ हो गया मुझे तो क्या करोगे?”
 “सबसे पहले मोबाइल से तुम्हारा नंबर डिलीट कर दूंगा । सारे मैसेज भी । फिर एक-एक करके तुम्हारी सारीफोटो डिलीट कर दूंगा, जिस भी चीज़ से तुम्हारी याद आ सकती होगी वो सबकुछ हटा दूंगा अपनी लाइफ से ।”
 “इससे क्या होगा, यादआनी बंद हो जाएगी?”
 “पता नहीं ।”
 “मालूम है हमारी जनरेशन की सबसे बड़ी ट्रेजेडी क्या है ?”
 “क्या?” 
“हमारे पास एक-दुसरे की यादें बहुत कम हैं।”
 जब बंदा चला जाता है तो हमे पहली बार याद आता है तो हमें पहली बार याद आता है की हम तमाम यादें बना सकते थे, लेकिन बना नहीं पाए। हम मरने के बाद जाने वाले की वो यादें याद करते हैं जो हमने अभी बनायीं नहीं होती ।”
 “पता नहीं क्या कह रही हो, ऐसी सैड बातें मत करो । मेरा भी मूड ऑफ हो जायेगा ।”
 “बड़े अजीब हो यार तुम, तुम्हे मूड की पड़ी है, वहां वो बंदा अब कभी नहीं आयेगा ।” 
“हाँ, तो मर गया तो मर गया । मुझे suicide करने वालो से sympathy नहीं होती ।” 
“प्लीज, ये ज्ञान मत दो, चुप हो जाओ ।”
 “उसको इतनी फिक्र होती तो वो जाता ही क्यूँ ?” 
“यार, तुम कभी-कभी इतना अजीब बिहेव करते हो ।” 
“अजीब मतलब?” 
“मतलब कुछ नहीं, मुझे बहुत जोर से रोने का मन है । प्लीज मुझे रो लेने दो । “ 
“तो रो लो । रोका किसने ।”
 “कैसे रो लूं, रोना नहीं आ रहा ?” 
“बस अब बातें बंद करो । चुप हो जाओ एकदम ।” 
“तुम थोडा पास आओ मेरे। तुम भी तो कभी ऐसे ही छोड़ के तो नहीं चले जाओगे न?” 
“नहीं पागल हो क्या, अगर जाना ही पड़ा तो साथ जायेंगे, चलो अब जल्दी से रो लो।” 
रोने में भी जल्दी करूँ?”
 “आराम से रो लो, चलो।” 
सुधा घंटो रोती रही। चंदर ने सुधा को घंटो चुप नहीं कराया। सुधा को रोते-रोते नीद आ गई । चंदर सोचने लगा की सही मैं कभी सुधा चली गई तो क्या होगा । अगर वो खुद मर गया तो सुधा क्या उसे एक दिन भूल जाएगी । चंदर को ये सब सोचकर बेचैनी हुई । चंदर ने कई दिनों बाद अपने बारे में सोचा । सोचकर उसको ये भी लगा की आखिर वो क्या कर रहा है । सुधा के साथ जिंदगी सही तो है । क्या फर्क पड़ता है की उसको शादी नहीं करनी । चंदर अपने बारे में सोचते-सोचते सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसको नींद नहीं आई ! जब रात मैं अच्छी नींद आना बंद हो जाये, तब मान लेना चाहिए की आगे जिंदगी मे ऐसा मोड़ आने वाला है, जिसके बाद सबकुछ बदल जायेगा ।