Musafir Cafe Review in Outlook Hindi Magazine


कहानी पूरी फिल्मी है !

यह बहुत अच्छी बात है कि आजकल के लेखक पहले कहानी लिखने और फिर उसे पटकथा में ढाले जाने का इंतजार नहीं करते हैं अब वे सीधे पटकथानुमा दूंगा उपन्यास लिख रहे हैं ! मुसाफ़िर कैफ़े (Musafir Cafe) भी 'रेडी टू फिल्म' टाइप उपन्यास हैं ! इसमें वह सब है जो एक फिल्म की पटकथा के लिए जरुरी है, थोड़ा रूमानी हो जाना, छटांक भर रूठना-मनाना, एक गफलत, चुटकी भर विडंबना, दो-ढाई सौ ग्राम हलकी क्रांति, जरूरतभर तीसरे की उपस्थिति, सभी पत्रों का एक जगह इकट्ठा हो जाना (इसे संयोग पढ़ा जाए) और फिर एक प्यारी सी हैप्पी एंडिंग ! 



एक कहानी है जो दो लोगों के अचानक मिलने से शुरू होकर बिना शादी के बच्चा हो जाने के बाद ढर्रे पर चलती दुनिया पहुंच जाती है ! शायद युवा पीढ़ी इतना ही सोचती है या फिर कहा जाएं ऐसा ही सोचती है !


Musafir Cafe-Hindi Novel by Divya Prakash Dubey

मुसाफ़िर कैफ़े (Musafir Cafe) एक हल्की-फुल्की किताब है जो किसी रेल यात्रा में एक बैठक में खत्म कर उसी यात्रा के साथ ही कहीं छूट जाती है ! अंग्रेजी शब्द रोमन के बजाय अंग्रेजी में ही है ! अब तक ऐसी प्रेम कहानियां पढ़ने के लिए नई उम्र के बच्चों को अंग्रेजी का ताकना पढ़ता था ! नायिका शादी भले ही न करे मगर एक पुरुष के संबल की उसे जरुरत है ! तो यह सूटेबल स्वावलंबन हल्की नोक झोंक के साथ चलता हुआ पूरी फिल्म की तरह ही खत्म हो जाता है !

तो यह सूटेबल स्वावलंबन हल्की नोक झोंक के साथ चलता हुआ पूरी फिल्म की तरह ही खत्म हो जाता है !

आउटलुक हिंदी | 24 अक्टूबर 2016