Musafir Cafe Review in Dainik Jagaran

मुसाफ़िर Cafe की चर्चा दैनिक जागरण के 30 अक्टूबर 2016 के रास्ट्रीय संस्करण में


मसाला चाय’ और ‘टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई’ के बाद ‘मुसाफिर कैफे’ युवा पाठकों के बीच ‘नई वाली हिंदी’ के लेखक के रूप में मशहूर दिव्य प्रकाश दुबे की तीसरी किताब है। पिछली दोनों किताबें कहानी-संग्रह थीं, यह उपन्यास है। इसमें दिव्य ने अपने लेखन के सुरक्षित घेरे से बाहर आने की कोशिश की है। वह सुरक्षित घेरा है कथ्य और कथानक का। ‘मुसाफिर कैफे’ में दिव्य ने हल्के फुल्के विषयों को छोड़ जीवन, उसके उद्देश्य जैसे दार्शनिक प्रश्नों को कहानी का आधार बनाया है। इतने गंभीर विषय के बावजूद भी कहानी की भाषा वही ‘नई वाली हिंदी’ है, जिसके लिए दिव्य प्रकाश दुबे जाने जाते हैं।

Musafir Cafe-Hindi Novel by Divya Prakash Dubey

'मुसाफिर कैफे' में दो मुख्य पात्र हैं - सुधा और चंदर। चंदर अछी-भली नौकरी में है और दुनिया के मानकों के हिसाब से सेटल्ड है, मगर वह जिंदगी से संतुष्ट नहीं है। दूसरी तरफ सुधा एक फैमिली लॉयर है। कोर्ट में टूटती शादियां देख फैसला कर चुकी है कि शादी नहीं करेगी। ये दोनों मिलते हैं, करीब आते हैं और एक ही घर में रहने लगते हैं। एक-दूसरे की चीजों का ध्यान रखने लगते हैं। हनीमून भी मना लेते हैं। वे शादीशुदा लोगों की तरह रहते हैं, लेकिन सुधा शादी नहीं करना चाहती, जबकि चंदर चाहता है। इसी बिंदु पर दोनों में मतभेद होता है। चंदर गर्भवती सुधा और नौकरी-घर सब कुछ छोड़कर एक अनिश्चित सफर पर निकल जाता है। इसके बाद कहानी जीवन के दार्शनिक प्रश्नों के इर्दगिर्द घूमने लगती है।




उपन्यास के उत्तरार्ध में भटकाव नजर आता है। चंदर के इधर-उधर भटकने के क्रम में बहुत से अनावश्यक और कहानी को फिजूल में लंबा करने वाले हिस्से गढ़े गए हैं। कई जगह लगता है कि ये उपन्यास नहीं, लेखक की आत्मकथा हो। सुधा का जो डर प्रस्तुत किया गया है, वह उसके चरित्र से मेल नहीं खाता। कुल मिलाकर, मुसाफिर कैफे का विषय तो बेहद गंभीर है लेकिन कमजोर कथानक के कारण उसके साथ समुचित न्याय नहीं हो पाया है। कहानी कुछ सच्ची लगती है तो कुछ झूठी भी प्रतीत होती है।   पीयूष द्विवेदी

पुस्तक : मुसाफिर कैफे (Musafir Cafe Available on Amazon India)
मूल्य : 150 रुपये

About the Book Musafir Cafe

Musafir Cafe is the Latest Hindi Novel written by the Best  Selling Young Author Divya Prakash Dubey. The Book is available on all the leading Online and Offline stores in India.

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EPaper National Edition Dainik Jagaran 30th Oct 2016 (See Page No 9)
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